सत्यनारायण मंदिर बरोठा मे श्रावण मास के उपलक्ष में चल रही शिव महापुराण कथा ।

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सत्यनारायण मंदिर बरोठा मे श्रावण मास के उपलक्ष में चल रही शिव महापुराण कथा ।

बरोठा , वृंदावन से पधारे श्रीवैष्णवाचार्य आकाश दुबे जी द्वितीय दिवस की कथा श्रवण कराते हुए कहा ,सारे सिद्धांतों का सार है वह शिव की कथा जो शिव की प्राप्ति कराती है । आगे की कथा कहते हुए जो भक्ति पूर्वक शिव पुराण का एक श्लोक या आधा श्लोक भी पड़ता है ,वह उसी क्षण पाप से छुटकारा पा जाता है । एक बार ब्रह्मा विष्णु में परस्पर वार्तालाप हुई ब्रह्मा ने कहा मैं आप से बड़ा हूं भगवान विष्णु ने कहा आपका जन्म मेरी नाभि कमल से हुआ है, इसी बात पर दोनों में युद्ध होने लगा मैं बड़ा मैं बड़ा उसी बीच में ज्योति प्रकट हुई जो ज्योतिर्लिंग कहलाया । ब्रह्मा और विष्णु ने उसका पता लगाया जो सबसे पहले इसका पता लगा लेगा इसका प्रारंभ और अंत कहां है वहीं सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा कहते हैं भगवान विष्णु भी और ब्रह्मा भी उस लिंग का पता नहीं लगा पाए । ब्रह्मा जी ने केतकी को गवा बनाकर भगवान विष्णु से कहा मैंने लिंग का पता लगा लिया है जब झूठ बोला ब्रह्मा ने और भगवान विष्णु से अपनी पूजा करवाई और कहा मैं सर्वश्रेष्ठ हूं उसी समय उस लिंग से भगवान भोलेनाथ प्रकट हो गए और भोलेनाथ ने एक गण को प्रकट किया जिसका नाम है काल भैरव देखते ही देखते काल भैरव ने पांच सिर थे जिस मुख से ब्रह्मा जी ने झूठ बोला उस सिर को ही काट दिया । जब से ब्रह्मा जी के चार सिर बचे भगवान ब्रह्मा ने और विष्णु ने शिव की स्तुति की वही शिव का स्वरूप लिंग के रूप में प्रकट हुआ और लिंग पूजन प्रारंभ हुआ आगे की कथा कहते हुए कहा ।

एक पार्थिव लिंग की पूजन नित्य करने से पापों का नाश होता है
दो लिंग की पूजा करने से अर्थ की सिद्धि प्राप्ति होती है
तीन लिंग की पूजा करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है प्रत्येक मनुष्य को कम से कम तीन लिंग की पूजा करनी चाहिए
कहां नारद जी ने काम पर विजय प्राप्त की अभिमान आ गया उस अभिमान को भगवान ने माया के द्वारा दूर किया कहते हैं जीवन में अभिमान मत करना चाहे कितने बड़े पद पर प्रतिष्ठित हो जाना सब कुछ मिल जाए फिर भी कभी मत कहना यह मैंने किया है नारद जी के मन में भी अभिमान हुआ मैंने काम पर विजय प्राप्त की और जब आता है या अभिमान वहां से खिसक जाते हैं भगवान नारद जी कर अभिमान को दूर किया नारद मोह प्रसंग
के साथ कथा का विश्राम हुआ द्वितीय दिवस

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